Wednesday, January 20, 2010

पुष्प की अभिलाषा

Pushp ki avilasha by Makhanlal Chaturvedi

पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक

- माखनलाल चतुर्वेदी

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सुरबाला - Apsara

11 comments:

  1. Itni sundar rachanase ru-b-ru karanke liy shukriya!

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  2. Dhanywad..sundar rachnase ru-b-ru karaya hai!

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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  4. मुझे तोड़ लेना वनमाली!
    उस पथ पर देना तुम फेंक,
    मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
    जिस पर जावें वीर अनेक

    बचपन की पद्य संग्रह याद आगई thanx

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  5. बड़े लेखको बड़ी बातें अब क्या कहें पहले ही बहुत कुछ कहां जा चुका है

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  6. अच्‍छी लगी ये रचना .. इस नए चिट्ठे के साथ हिन्‍दी चिट्ठा जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. fantastic, read 28 years ago in class 6!! and since now.. then impressed, no impressed.. timeless

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  9. bachpan ki yaad taza ho gai.Munna singh Gajrola Bulandshahr

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  10. bachpan ki yaad taza ho gai.Munna singh Gajrola Bulandshahr

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