Pushp ki avilasha by Makhanlal Chaturvedi
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक
- माखनलाल चतुर्वेदी
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सुरबाला - Apsara
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behtreen rachnaa..
ReplyDeleteItni sundar rachanase ru-b-ru karanke liy shukriya!
ReplyDeleteDhanywad..sundar rachnase ru-b-ru karaya hai!
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
ReplyDeleteमुझे तोड़ लेना वनमाली!
ReplyDeleteउस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक
बचपन की पद्य संग्रह याद आगई thanx
बड़े लेखको बड़ी बातें अब क्या कहें पहले ही बहुत कुछ कहां जा चुका है
ReplyDeleteअच्छी लगी ये रचना .. इस नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletefantastic, read 28 years ago in class 6!! and since now.. then impressed, no impressed.. timeless
ReplyDeletebachpan ki yaad taza ho gai.Munna singh Gajrola Bulandshahr
ReplyDeletebachpan ki yaad taza ho gai.Munna singh Gajrola Bulandshahr
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