गीत by Suryakant Tripathi 'Nirala'
सखि, वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी-
पिक-स्वर नभ सरसाया।
लता-मुकुल-हार-गन्ध-भार भर
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया।
आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अञ्चल
पृथ्वी का लहराया।
not complete :(
Saturday, July 3, 2010
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बढ़िया लिखा है आपने ..
ReplyDeleteकभी मेरे ब्लॉग पर भी आईये |
http://techtouch.tk
नंदन जी, मैंने आपके ब्लॉग का लिंक आपसे बिना पूछे फेसबुक पर निरालाजी के ग्रुप पर दिया है, उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगे / और मै चाहता हूँ कि आप भी उस ग्रुप को ज्वाइन करे. धन्यवाद
ReplyDeletehttp://www.facebook.com/groups/109971445687874/
nirala ji ki sundar kriti prastut krne k liye dhanywadiye dhanywad
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