वर दे वीणावादिनी by सूर्य कांत त्रिपाठी 'निराला'
वर दे वीणावादिनी वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव, अमृत-मंत्र नवभारत में भर दे ।
काट अंध उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष- भेद-तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दें !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मंद्र रव
नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे ।
--निराला
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment