Thursday, June 10, 2010

तोड़ती पत्थर(Todti Patthar) by Suryakant Tripathi 'Nirala'

तोड़ती पत्थर by Suryakant Tripathi 'Nirala'

वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर --
वह तोड़ती पत्थर ।

कोई न छायादार
पेड़, वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
गुरु हथौड़ा हाथ
करती बार बार प्रहार;
सामने तरु - मालिका, अट्टालिका, प्राकार ।

चड़ रही थी धूप
गरमियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू
गर्द चिनगी छा गयी

प्रायः हुई दुपहर,
वह तोड़ती पत्थर ।

देखते देखा, मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा छिन्न-तार
देखकर कोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोयी नहीं
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार ।
एक छन के बाद वह काँपी सुघर,
दुलक माथे से गिरे सीकार,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा --
"मैं तोड़ती पत्थर"

One of Nirala's best poem.

30 comments:

  1. नंदन, मेरा नाम अरुण पाण्डेय है| मै भी आईआईटी कानपुर से हूँ १९७५. अच्छा लगा कि भारत में अब भी कुछ लोग हैं जिन्हें हिन्दी साहित्य से प्रेम है| मुझे लगता था यह विधा अब भारत में लुप्त हों गयी है| खैर मेरी एक विनती है: निराला की एक दूसरी कविता मैं ढूंढ रहा हूँ जिसकी प्रथम पंक्ति के कुछ शब्द हैं "जीवन सारा बीत गया जीने की तय्यारी में" अगर तुम्हें मिल सके तो क्या मुझे भेज सकते हों? यहाँ अमेरिका में मुझे नही मिल रही है| धन्यवाद| मेरा ईमेल है: arun.pandeya@gmail.com

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    1. क्या है मेरी बारी में।
      जिसे सींचना था मधुजल से
      सींचा खारे पानी से,
      नहीं उपजता कुछ भी ऐसी
      विधि से जीवन-क्यारी में।
      क्या है मेरी बारी में।

      आंसू-जल से सींच-सींचकर
      बेलि विवश हो बोता हूं,
      स्रष्टा का क्या अर्थ छिपा है
      मेरी इस लाचारी में।
      क्या है मेरी बारी में।

      टूट पडे मधुऋतु मधुवन में
      कल ही तो क्या मेरा है,
      जीवन बीत गया सब मेरा
      जीने की तैयारी में।
      क्या है मेरी बारी में।

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  2. arun ji hats off 2 u.... n thanxx a lot
    thankyou very much......
    bye...
    take care
    :)

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  3. Beauty is nt sumthing tht having beautiful eyes or lips, wonderful curves or colour..As 4 the poet any women who love 2 be a women can b subject of the imagination..

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  4. I read, when i was in 7th standard, since that time i was searching this poetry. thanks to post.

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  5. Just beautiful. . Rom rom uthh khadaa hota jab jab yah kavita padhta hoon.. dhanyavaad

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. Nandan ji, matter of great happiness that in U S also you are carrying the roots of your Indianness. So proud of you. I don't know how old you are but I salute you.
    Mrs Narayani Singh
    H M KV Bacheli

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. Please provide the text of jago phir, ek baar by suryakant Tripathi nirala

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  10. You missed one line श्याम तन, भर बँधा यौवन,
    "nat Nayan , priya karma rat man" Please add this line from the original poem .
    -Manish pathak

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  11. Outstanding Poem! Sir! Salute u!

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  12. हिंदी साहित्य अमर रहेगा।

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  13. हिंदी साहित्य अमर रहेगा।

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  14. The occupants of Spectrum Metro Sector 75 Noida will have access to the finest facilities that would ensure a hassle free functioning of businesses.

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  18. Plz aap m se koi sarveshwar fatal saxena li poem" Na Na prabhu/ shakti nahi magunga tumse/ arjit karunga /ladkar..." Agar mil jaye to

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  19. Plz aap m se koi sarveshwar fatal saxena li poem" Na Na prabhu/ shakti nahi magunga tumse/ arjit karunga /ladkar..." Agar mil jaye to

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  20. Mahapraan nirala ji ko mera shat shat pranaam

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  21. Mahapraan nirala ji ko mera shat shat pranaam

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  22. Bahut saare achche, sundar aur parshansaa karte comments hai yaha... sach-much ek behatareen kavita, depicting the shock and restlessness Nirala felt after seeing a woman laborer working on raw stone in brazen summer.

    One thing which is surprisingly (maybe not so surprising :( ) missing in ALL the comments is the point Nirala attempted to make, we have all collectively failed to see the depiction of the dark realities of the Caste system, aka the filth of wretched Varna-Vayvasthaa... sigh :X

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